शरद पवार और नितिन गडकरी ने सिर्फ 40 घंटे में बचा ली उद्धव ठाकरे की कुर्सी

शरद पवार और नितिन गडकरी ने सिर्फ 40 घंटे में बचा ली उद्धव ठाकरे की कुर्सी

उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री पद फिलहाल बच गया है। उनकी कुर्सी पर मंडराते खतरे को दूर करने में जिन दो लोगों की अहम भूमिका रही है, उनमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) और बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी  प्रमुख हैं। इन दोनों की सलाह और मदद से उद्धव ठाकरे एक बड़े संवैधानिक और राजनीतिक संकट का सामना करने से बच गए हैं। शरद पवार के एक बेहद करीबी का कहना है कि पवार अपने 50 साल के राजनीतिक अनुभव से यह जानते थे कि राज्यपाल  उद्धव ठाकरे को विधान परिषद  में नामित करने के लिए तैयार नहीं होंगे क्योंकि राज्यपाल के पास इसकी वैधानिक वजहें हैं। शरद पवार यह भी जानते थे कि उद्धव ठाकरे को विधान परिषद में नामित करने के लिए राज्यपाल को बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद यह जताने के लिए कि महा विकास अघाड़ी  एकजुट है और समूचा मंत्रिमंडल उद्धव ठाकरे के साथ खड़ा है, पवार के कहने पर दो बार मंत्रिमंडल ने उद्धव को विधान परिषद में नामित करने का न सिर्फ प्रस्ताव पास किया, बल्कि मंत्रियों को राजभवन भेजकर गुहार भी लगवाई। वहीं, दूसरी तरफ शरद पवार उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर नितिन गडकरी के संपर्क में थे। पवार और उद्धव इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि गडकरी की दिल्ली में और संघ परिवार में क्या हैसियत है।

26 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन उद्धव ठाकरे ने सोशल मीडिया पर लाइव संवाद में नितिन गडकरी का सार्वजनिक रूप से धन्यवाद अदा किया। मराठी के अलावा उद्धव जानबूझकर हिंदी में भी बोले और नरेंद्र मोदी और अमित शाह तक साफ-साफ यह मेसेज पहुंचाया गया कि महाराष्ट्र के कुछ नेता मामले को बिगाड़ना चाह रहे हैं। बाद में शरद पवार और नितिन गडकरी की सहमति से बात बनने लगी।

26 अप्रैल को नितिन गडकरी की सार्वजनिक तारीफ के अगले ही दिन 27 अप्रैल को उद्धव ठाकरे, शरद पवार, अजित पवार और आदित्य ठाकरे की एक आपात बैठक शिवाजी पार्क के बालासाहेब ठाकरे राष्ट्रीय स्मृति न्यास के दफ्तर (पुराने महापौर बंगले) में हुई। इस मीटिंग में शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नितिन गडकरी के बीच हुई बातों के आधार पर नई रणनीति तैयार की गई। उद्धव ठाकरे के निकटवर्ती सूत्रों का कहना है कि नितिन गडकरी ने दिल्ली में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर यह पता लगाया कि राज्यपाल की ओर से उद्धव ठाकरे को विधान परिषद में नामित किया जाना संभव नहीं है और उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री पद बचाने का रास्ता सिर्फ विधान परिषद की खाली पड़ी सीटों का चुनाव है। यह काम केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मदद के बिना संभव नहीं था।

शरद पवार की सलाह और आपात मीटिंग में बनी रणनीति के मुताबिक अगले दिन 28 अप्रैल को उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और राजनीतिक संकट को टालने के लिए मदद मांगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्धव ठाकरे को मदद का भरोसा दिलाया।

29 अप्रैल को दिल्ली और मातोश्री के बीच कई राजनीतिक सहमतियां बनीं। खास बात यह रही कि इसमें देवेंद्र फडणवीस और राज्य बीजेपी के नेताओं को शामिल नहीं किया गया। इसके बाद 30 अप्रैल की सुबह उद्धव ठाकरे के सबसे विश्वसनीय मिलिंद नार्वेकर अकेले राजभवन गए। राज्यपाल ने नार्वेकर की सूचनाओं की तस्दीक दिल्ली से की। शाम को मिलिंद नार्वेकर और शिवसेना विधायक दल के नेता और राज्य के नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे सरकार की ओर से राज्यपाल के पास या लिखित प्रस्ताव लेकर गए। शाम ढलते ढलते राज्यपाल ने चुनाव आयोग से चुनाव कराने का आग्रह कर डाला।

एक मई को चुनाव आयोग की इमर्जेंसी मीटिंग बुलाई गई। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा विदेश में हैं, उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग में शामिल किया गया और महाराष्ट्र विधान परिषद की 9 खाली पड़ी सीटों के चुनाव कराने का फैसला लिया गया।

पिछले कई महीने से महाराष्ट्र की राजनीति का उलझा पेच 40 घंटे की राजनीतिक सहमति से सुलझ गया। इस प्रकार अब यह तय हो गया है कि उद्धव ठाकरे को इस्तीफा नहीं देना होगा। 21 मई को होने वाले विधान परिषद में उनका चुना जाना लगभग तय है।