कच्चे तेल के दाम में 1 डॉलर की कमी से भारत को कितना फायदा?

कच्चे तेल के दाम में 1 डॉलर की कमी से भारत को कितना फायदा?

34 साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि कच्चे तेल के भाव 0 यानी जीरो से भी नीचे चले गए हैं। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI)की कीमतों में इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली। कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण अमेरिका में कच्चे तेल की मांग में आई भारी कमी के चलते डब्ल्यूटीआई का वायदा भाव सोमवार को -$3.70 प्रति बैरल के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया।

भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की सप्लाई पर है, न कि WTI की। ब्रेंट का दाम अब भी 20 डॉलर के ऊपर बना हुआ है। गिरावट सिर्फ WTI के मई वायदा में दिखाई दी, जून वायदा अब भी 20 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है। लिहाजा भारत पर अमेरिकी क्रूड के नेगेटिव होने का खास असर नहीं होगा। लेकिन कच्चे तेल के दाम से कैसे भारत पर असर पड़ता है यह जानना जरूरी है।

भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक
भारत कच्चे तेल का बड़ा इंपोर्टर है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा आयात के जरिए पूरा किया जाता है। ऐसे में जब भी क्रूड सस्ता होता है तो भारत को फायदा होता है। तेल जब सस्ता होता है तो आयात में कमी नहीं पड़ती बल्कि भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड भी कम होता है। रुपये को फायदा होता है, डॉलर के मुकाबले उसमें मजबूती आती है और महंगाई भी काबू में आ जाती है। जाहिर है जब बाहर से सस्ता कच्चा तेल आएगा तो घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें कम रहेंगी।

कच्चे तेल के दाम में $1 की कमी का भारत को कितना फायदा?
कच्चे तेल के भाव में जब एक डॉलर की कमी आती है तो भारत के आयात बिल में करीब 29000 करोड़ डॉलर की कमी आती है। यानी 10 डॉलर की कमी आने से 2 लाख 90 हजार डॉलर की बचत। सरकार को इतनी बचत होगी तो जाहिर है पेट्रोल-डीजल और अन्य फ्यूल के दाम पर असर पड़ेगा।

रिटेल दाम पक क्या होता है असर?
जब कच्चे तेल के दाम गिरते हैं तो पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स के दाम में भी गिरावट दर्ज की जाती है। यानी पेट्रोल और डीजल सस्ते हो सकते हैं। कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर की कमी का सीधा-सीधा मतलब है पेट्रोल जैसे प्रॉडक्ट्स के दाम में 50 पैसे की कमी। इसी तरह यदि क्रूड के दाम 1 डॉलर बढ़ते हैं तो पेट्रोल-डीजल के भाव में 50 पैसे की तेजी आना तय माना जाता है।